Kheti Kisani: शुरू करिये इलाइची की खेती और कमाइए लोखो रुपये, देखिये कैसे करनी है इलाइची की खेती भारत के मसालों की प्रसिद्धि पूरी दुनिया में बहुत ऊँची है। इस देश में अनेक राज्यों में अलग-अलग प्रकार की मसालों की खेती बड़े पैमाने पर होती है। इस खेती के बीच, इलायची की खेती एक विशेष स्थान रखती है और इससे किसान अच्छी आय कमा रहे हैं। इलायची खाद्य, कंफेक्शनरी उत्पादों और पेय पदार्थों को बनाने में उपयोग होती है। इसकी बाजार में मांग काफी अच्छी रहती है और इससे किसान भाई मुनाफा कमा सकते हैं। भारत में इलायची की खेती प्रमुख रूप से केरल, कर्नाटक और तमिलनाडु में की जाती है।
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इन राज्यों में साल भर में 1500-4000 मिमी वर्षा होती है, जो इस फसल के लिए अत्यंत उपयुक्त होती है। इलायची का पौधा 1 से 2 फीट लंबा होता है और इसकी पत्तियां 30 से 60 सेमी लंबी होती हैं। इसकी खेती के लिए काली दोमट मिट्टी, लैटेराइट मिट्टी, दोमट मिट्टी और अच्छी जल निकासी वाली काली मिट्टी उपयुक्त होती है। एक हेक्टेयर में 135 से 150 किलोग्राम तक इलायची की उपज हासिल की जा सकती है, और बाजार में इसका मूल्य 1100 से 2000 रुपये प्रति किलोग्राम के बीच रहता है। इससे किसान सालाना 3 लाख रुपये तक का मुनाफा प्राप्त कर सकते हैं।
इलायची की खेती: समय, मांग और उपयोग
इलायची की खेती करने से पहले इसे नर्सरी में तैयार करना चाहिए। यहाँ एक हेक्टेयर के लिए पर्याप्त मात्रा में इलायची के बीज की आवश्यकता होती है। इलायची के पौधों को खेत में लगाने से पहले उन्हें पूरी तरह से पक जाने देना चाहिए। फिर जब फल पूरी तरह से पक जाते हैं, तब उन्हें तोड़ा जाता है। इसके बाद, पौधों को आकार और रंग के अनुसार छांट लेना चाहिए और इन्हें बाजार में बेचकर अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है। इलायची की मांग बाजार में हमेशा बनी रहती है और यह उत्पाद किसानों को अच्छा मुनाफा दिलाने की क्षमता रखता है।
ऐसे करें इलायची की खेती
इलायची की खेती एक लाभदायक व्यवसाय है, जिसमें किसान अच्छी आय कमा सकते हैं। इसे उचित समय पर लगाना चाहिए और इलायची के पौधों को उचित देखभाल देनी चाहिए। यदि इसे ध्यान में रखा जाए, तो इलायची की खेती से किसान अच्छा उत्पादन और मुनाफा दोनों प्राप्त कर सकते हैं। यह व्यवसाय विशेष रूप से तकनीकी ज्ञान, उपयुक्त मिट्टी, और वातावरण के मानवाधिकारिक अनुरूप चिंतन की आवश्यकता रखता है। इसलिए, इलायची की खेती को ध्यानपूर्वक नियोजित करना चाहिए, जिससे यह आर्थिक रूप से लाभदायक और मानवाधिकारिक दोनों हो सके।
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