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कम पानी में ज्यादा मुनाफा देंगी मक्के की खेती किसान हो जायेंगे धनवान जानिए खेती करने का आसान तरीका

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धान की खेती करने वाले किसानों के लिए ये खुशखबरी है। घटते भूजल संकट को देखते हुए पूरे देश में धान की खेती कम करने पर विचार किया जा रहा है. इसकी जगह ऐसी फसलों को लगाया जाए जिनकी लागत कम हो, मुनाफा अच्छा हो और पानी की खपत कम हो. ऐसे फसलों में मक्का का प्रमुख स्थान है. आंध्र प्रदेश के एक किसान ने धान की खेती छोड़कर मक्का की खेती शुरू की और इससे मिलने वाले मुनाफे के कारण वह इलाके के अन्य किसानों के लिए आदर्श बन गए.

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इस प्रगतिशील किसान का नाम बंदरू श्रीनिवास राव है जो आंध्र प्रदेश के गुंटूर जिले के वट्टीचेरुकुरु गांव के रहने वाले हैं. यह किसान सिर्फ 30,000 रुपये के निवेश में एक सीजन में 1 लाख रुपये कमा रहे हैं. यानी प्रति एकड़ 70,000 रुपये का मुनाफा होता है. रबी की मक्का की फसल 4 से 5 महीने में तैयार हो जाती है.

राव बताते हैं कि वह 2000 से पहले धान और मूंग की खेती करते थे, लेकिन उसके बाद उन्होंने मक्का की खेती शुरू की, जिससे अच्छा मुनाफा होने लगा, इसलिए अब तक वे इसकी खेती कर रहे हैं. आज ऐसे ही किसानों की बदौलत आंध्र प्रदेश का देश के कुल मक्का उत्पादन में महत्वपूर्ण योगदान है. यहां मक्का की उत्पादकता भी अन्य राज्यों की तुलना में अधिक है. राव तकनीकी और अन्य सहायता के लिए भारतीय मक्का अनुसंधान संस्थान (आईआईएमआर) के संपर्क में रहते हैं. राव को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) और अन्य संगठनों से कई राष्ट्रीय स्तर के पुरस्कार भी मिल चुके हैं.

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बीज ड्रिल मशीन से की जाती है मक्का की बुवाई

राव ने मक्का की बुवाई के लिए मशीनें भी विकसित की हैं, जिनकी मदद से किसान बुवाई का काम बहुत जल्दी खत्म कर सकते हैं. यह किसान सीड ड्रिल मशीन से बुवाई का काम करते हैं. मक्का की खेती में मुनाफा देखकर राव ने 22 एकड़ में इसकी खेती की है, जिसमें से 10 एकड़ उनकी अपनी है और बाकी लीज पर ली गई है. वह लीज पर ली गई जमीन के लिए प्रति फसल 20,000 रुपये प्रति एकड़ का किराया देते हैं.

जीरो टिलेज तकनीक से की जाती है खेती

खास बात यह है कि उन्होंने कई खेतों में जीरो टिलेज तकनीक का इस्तेमाल करके खेती की है, जो न सिर्फ पर्यावरण के अनुकूल है बल्कि किसानों को काफी बचत करने में भी मदद करती है. पिछली फसल की कटाई के बाद बिना जुताई के मशीन से मक्का बोने की इस प्रणाली को नो-टिल फार्मिंग कहा जाता है. इस तरीके से बोने के साथ जुताई की जरूरत नहीं पड़ती है और खाद और बीज को एक साथ बोया जा सकता है.

जीरो टिलेज मशीन एक सामान्य ड्रिल की तरह होती है, लेकिन इसमें कुल्पा (टाइन) चाकू की तरह होता है. यह कुल्पा मिट्टी में खांचे के आकार की दरार बनाता है, जिसमें खाद और बीज सही मात्रा में सही गहराई तक पहुंच जाते हैं. राव ने शुरुआती दौर में साइकिल रिंग, पहिया आधारित होल मेकर आदि का उपयोग करके मक्का की खेती को धान से अधिक लाभदायक बना दिया है.

jitu

नमस्कार मेरा नाम जितु देशमुख है मैं 2 वर्षो से डिजिटल मीडिया में कार्यरत हूँ. ऑटोमोबाइल, मोबाइल और किसान समाचार में विशेष रूचि है दुनिया में हो रही हलचल को सत्यता और सटीकता से आप तक पहुंचाना।

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