Sarpagandha Farming: इस खेती से सिर्फ 80 हजार रूपये के खर्चे में 5-6 लाख का मुनाफा, जाने इसकी टेक्निक, छत्तीसगढ़ के किसान पारंपरिक फसलों की खेती के साथ औषधीय पौधों की खेती कर मालामाल हो सकते हैं. राज्य के किसानों ने औषधीय फसलों में अश्वगंधा, सर्पगंधा, सतवार, बुच, आओला, तिखुर एवं सुगंधित फसलों जैसे कि लेमनग्रास, पामारोजा, जमारोजा, पचौली, ई-सीट्रिडोरा को अपना रहे हैं.
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अच्छी खासी कमाई वाली खेती है सर्पगंधा की खेती Sarpagandha farming is a very profitable farming
औषधीय पौधे सर्पगंधा की खेती किसानों के लिए अच्छी कमाई का जरिया बनी है. सर्पगंधा की फसल 18 माह में तैयार हो जाती है. महज 85-90 हजार रुपए खर्च कर डेढ़ साल में 5-6 लाख रुपए की कमाई कर रहे हैं. सर्पगंधा के फल, तना, जड़ सभी चीजों का उपयोग होता है, इसलिए मुनाफा ज्यादा होता है. किसान कृषि वैज्ञानिकों की सलाह के अनुसार इस फसल को लगाए तो इसका फायदा भी उन्हें मिल सकता है. एक एकड़ में करीब 25-30 क्विंटल सर्पगंधा का उत्पादन होता है. सर्पगंधा की कई प्रजातियां होती हैं. इसमें राववोल्फिया सरपेंटिना प्रमुख है.
क्या क्या फायदे है इस खेती से What are the benefits of this farming
राववोल्फिया टेट्राफाइलस दूसरी प्रजाति है, जिसे औषधीय पौधों के रूप में उगाया जाता है. सर्पगंधा की जड़ औषधि के रूप में प्रयोग में लाए जाते हैं. इस पौधे के नर्म जड़ से सर्पेंन्टीन नामक दवा निकाली जाती है. इसके अलावा जड़ में रेसरपीन, सरपेजीन, रौलवेनीन, टेटराफिर्लीन आदि अल्कलाइड भी होते हैं. यह एक छाया पसंद पौधा है, इसलिए आम, लीची एवं साल पेड़ के आसपास प्राकृतिक रूप से उगाया जा सकता है.
यह खेती कब करना होगा फायदेमंद When will this farming be beneficial
इस पौधे को रोपने के लिए मई में खेत की जुताई करें. वर्षा आरंभ होने पर गोबर की सड़ी खाद 200 क्विंटल प्रति हेक्टेयर देकर मिट्टी में मिला दें. लगाते समय 45 किलो नाइट्रोजन, 45 किलो फॉस्फोरस तथा 45 किलो पोटाश दें. नाइट्रोजन की यही मात्रा (45 किलो) दो बार अक्टूबर एवं मार्च में दें. कोड़ाई कर खरपतवार निकाल दें. जनवरी माह से लेकर वर्षा काल आरंभ होने तक 30 दिन के अंतराल पर और जाड़े के दिनों में 45 दिन के अंतराल पर सिंचाई करें. सर्पगंधा डेढ़ से दो वर्ष की फसल है.
10 से 38 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान पर होती है सर्पगंधा की खेती Sarpagandha is cultivated at a temperature of 10 to 38 degree centigrade.
कृषि विज्ञान के अनुसार इसकी खेती उष्ण एवं समशीतोष्ण जलवायु में की जा सकती है. 10 डिग्री सेंटीग्रेड से 38 डिग्री सेंटीग्रेड तक इसकी खेती के लिए बेहतर तापमान है. जून से अगस्त तक इसकी खेती की जाती है. 1200-1800 मिलीमीटर तक वर्षा वाले क्षेत्र में इसकी खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है. सर्पगंधा की खेती बीज के द्वारा, तना कलम एवं जड़ कलम के द्वारा की जा सकती है.
पागलों की दवा में भी इस्तेमाल होता है सर्पगंधा Sarpagandha is also used in the medicine of lunatics.
सर्पगंधा से जुड़ी अनेक कथायें हैं. ऐसी ही एक कथा के अनुसार कोबरा सर्प (cobra snake) से युद्ध के पूर्व नेवला सर्पगंधा की पत्तियों को चूसकर ताकत प्राप्त करता है. दूसरी कथा के अनुसार सर्पदंश में सर्पगंधा की ताजा पीसी हुई पत्तियों को पांव के तलवे के नीचे लगाने से आराम मिलता है. एक अन्य कथा के अनुसार पागल व्यक्ति द्वारा सर्पगंधा की जड़ों के उपभोग से पागलपन से मुक्ति मिल जाती है. इसी कारण से भारत में सर्पगंधा को पागल-की-दवा के नाम से भी जाना जाता है.